270 थर्ड जेंडर में 62 एचआईवी संक्रमित
इंदौर। इंदौर सहित पूरे जिले में वैसे तो सैकड़ों थर्ड जेंडर (किन्नर) नजर आते हैं, मगर आज तक इनकी वास्तविक संख्या का सही रिकॉर्ड किसी के पास नहीं है। सरकार की पहल पर 2020 से इनको शासकीय योजनाओं का लाभ मिल सके, इसके लिए इनका पंजीयन शुरू किया गया है। इंदौर में इनके लिए काम कर रहे एनजीओ के रिकॉर्ड में सिर्फ 270 ही पंजीकृत किन्नर हैं। इनमें से इंदौर सहित पूरे जिले में 62 थर्ड जेंडर एचआईवी (एड्स) पीडि़त हैं।
एड्स नियंत्रण विभाग भोपाल के अनुसार इंदौर में 26 तो बाकी 36 जिलों में एड्स पीडि़त ट्रांसजेंडर मौजूद हैं। सरकार के निर्देश पर साल 2020 में एक एनजीओ ने शहर व आसपास मौजूद थर्ड जेंडर वर्ग के लिए काम करना शुरू किया है। अभी तक एनजीओ के रिकॉर्ड में 270 थर्ड जेंडर ही रजिस्टर्ड हो सके हैं। थर्ड जेंडर को वृहन्नला किन्नर के अलावा ट्रांस जेंडर भी बोला-लिखा व कहा जाता है।
सात सालों में 62 एड्स पीडि़त
एड्स नियंत्रण स्वास्थ्य विभाग के अनुसार 1 अप्रैल 2021 से कल 3 मार्च 2022 तक जांच किए जाने पर सिर्फ 2 एचआईवी पीडि़त ट्रांसजेंडर, यानी थर्ड जेंडर इंदौर में सामने आए हैं। साल 2014 में 5, साल 2015 में 3, साल 2016 में 2, साल 2017 में 5, साल 2018 में 2, साल 2019 में 2, साल 2020 में 3 ट्रांसजेंडर एचआईवी पीडि़त पाए गए हैं। इस तरह पूरे इंदौर शहर में 26 व पूरे इंदौर जिले में अब 62 ट्रांसजेंडर एचआईवी पीडि़त हैं।
1 मरीज पर लगभग सवा लाख रुपए खर्च
सरकार एड्स व अन्य पीडि़तों सहित ट्रांसजेंडरों की जांच व इलाज पर एक साल में लगभग सवा लाख रुपए खर्च करती है। एक महीने की 30 या 31 गोली जो इन्हें रोज खाना पड़ती है, की डिब्बी की बाजार में 6000 रुपए कीमत है। 12 महीनों में 72,000 रुपए की गोली एक मरीज को दी जाती है। इसके अलावा सालभर में इनकी 3 से 4 बार जांच की जाती है, जिसका खर्च लगभग 50 हजार रुपए आता है।
मरते दम तक नहीं जाती यह बीमारी
एड्स नियंत्रण विभाग के अनुसार एक बार एचआईवी पीडि़त हो जाने के बाद यह बीमारी कभी ठीक नहीं होती। बस नियमित दवाइयों के कारण नियंत्रण में रहती है। यानी एक बार इसके शिकंजे में आने के बाद इससे छुटकारा मरने के बाद ही मिलता है।
अब नकली थर्ड जेंडर गैंग की घुसपैठ
असली थर्डजेंडर का वजूद पृथ्वी पर आदिकाल से रहा है। किन्नर हिमालय के क्षेत्रों में बसने वाली एक मनुष्य जाति का नाम है। पुराणों और महाभारत की कथाओं में तो इनका उल्लेख कई जगह कई बार किया गया है। हिमालय का पवित्र शिखर कैलाश किन्नरों का प्रधान निवास स्थान था, जहां वे शंकर की सेवा किया करते थे। उन्हें देवताओं का गायक और भक्त समझा जाता है और यह विश्वास है कि यक्षों और गंधर्वों की तरह वे नृत्य और गान में प्रवीण होते थे। मगर कुछ सालों में अपने फायदे के लिए इनमें कई नकली किन्नरों की घुसपैठ हो चुकी है, जो अपनी करतूतों से मांगलिक आयोजनों पर शगुन का नेग लेने के लिए बधाई के गीत गा-बजाकर अपना पेट भरने वाले असली किन्नरों को बदनाम कर रहे हैं।
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