भोपाल। मप्र की एक चौथाई आबादी नशेड़ी है। राज्य में शराबबंदी के जब तब उठते मुद्दे के बीच यह विषय भले ही बहस का मुद्दा नहीं बना है। बावजूद इसके राज्य की 23.94 प्रतिशत आबादी भांग व शराब जैसे मादक पदार्थों की शिकार है। लत की वजह से सरकार के राजस्व इजाफे में करीब 10 हजार करोड़ रूपये से अधिक का सहयोग देने वाले इन व्यक्तियों को दरकिनार यदि नशे की चपेट में फंसे बच्चों को भी शामिल कर लिया जाए, तो यह संख्या बढ़कर करीब 28 प्रतिशत तक पहुंच सकता है। खास बात है कि नशे से नष्ट हो रहे बचपन को बचाने सरकार के पास न कोई आंकड़ा है और न ही इनकी लत छुड़ाने नशा मुक्ति केंद्र ही बनाए गये हैं।
वजह यह भी है कि बीते दो साल पहले केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई मैग्रीट्यूड सब्सटेंस यूज इंडिया रिपोर्ट में भी नशे के शिकार बच्चों का अलग से शामिल नहीं किया गया है। मप्र में भी यही स्थिति है। नशे की गिरफ्त में फंसे बच्चों के इलाज व पुर्नवास के लिये कोई ठोस प्रयास नहीं किये गये हैं। इन बच्चों के लिये काम करने वाली सामाजिक संस्थाओं पर विश्वास किया जाए तो महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ ही सामाजिक न्याय विभाग इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से बचते रहे हैं। यही वजह है कि करोड़ों रूपये दूसरे मदों में खर्च करने वाले यह विभाग अब तक इन बच्चों के लिये प्रदेश के किसी जिले में नशामुक्ति केंद्र तक नहीं बना पाये हैं। जबकि अकेले भोपाल में ही इन बच्चों के नशे से जुड़े करीब 60 से 70 मामले जिला बाल कल्याण समिति के संज्ञान में आ जाते हैं।
शराब भांग से इतर करते हैं 6 लाख नशा
5 करोड़ 30 लाख मतदाताओं वाले इस प्रदेश में 23.94 प्रतिशत यानी 1 करोड़ 25 लाख शराब व भांग के नशे की चपेट में है। जबकि 2.55 प्रतिश यानी 13.35 लाख लोग नशे के दूसरे माध्यमों की चपेट में है। इसमें 6.51 लाख सिर्फ सार्वजनिक रूप से प्रबंधित अफीम के शिकार है।
सरकार के लिये फायदेमंद है नशेडी
सरकार के लिये नशेड़ी आर्थिक रूप से फायदेमंद साबित हो रहे हैं। आंकलन इसी से किया जा सकता है कि बीते 5 सालों में सरकार का राजस्व दो गुना बढ़ गया है। 2016-17 में जहां सरकार शराब व भांग से जहां 5772 करोड़ रूपये कमा रही थी। वहीं मौजूदा समय में यह बढ़कर 10711 करोड़ रूपये हो गया है।
न्यायालय आदेश की अवहेलना
मप्र सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवहेलना करने से भी नहीं हिचक रहा है। बच्चों में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति के खिलाफ 14 दिसंबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट बच्चों में नशीले और मादक पदार्थों के संबंध में राष्ट्रीय स्तर की कार्ययोजना बनाने के लिये कह चुका है। इसमें बच्चों की पहचान, नशा मुक्ति, परामर्श और पुनर्वास जैसे प्रावधान और इंतजाम के निर्देश दिये गये। इतना ही नहीं स्कूलों में नशीली दवा और मादक पदार्थ के दुरुपयोग से जुड़े पाठ्यक्रम में शामिल करने को कहा था, लेकिन यह सिर्फ 8वीं व 11वीं में ही सिमट गये हैं। इसके अलावा देश के सभी जिलों में एक नशा मुक्ति केंद्र खोलने के भी निर्देश दिए गए थे।
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