भोपाल। चुनावी हो-हल्ले के बीच शासन ने ताबड़तोड़ अवैध कॉलोनियों को वैध करने की प्रक्रिया तो शुरू करवा दी, मगर महत्वपूर्ण नियमों में संशोधन पर इंदौर से भोपाल तक खामोशी पसरी है। किसी अधिकारी या जनप्रतिनिधि के पास इस बात का जवाब नहीं है कि कागजों पर तो ये अवैध कॉलोनियां वैध कर दी, मगर जो बने मकान हैं, उनके नक्शों को कैसे मान्य किया जाएगा और अधिकांश भूखंड भी नोटरियों से ही लोगों ने खरीदे हैं, तो उन्हें रजिस्ट्रियों में किस तरह से तब्दील किया जाएगा, ताकि बैंक लोन मिलने से लेकर भविष्य में अन्य तरह की परेशानियां इन कॉलोनियों में रहने वालों को न हो। अभी नगर निगम ने पहली खेप में 238 कॉलोनियों को वैध किया हैं। मगर उनमें से अधिकांश की एनओसी कॉलोनी सेल को नहीं मिली है।
पूर्व के हर चुनावों से पहले अवैध कॉलोनियों को वैध करने का डमरू बजाया जाता है, ताकि भोपाल सहित प्रदेशभर में रहने वाले लाखों मतदाताओं के वोट हासिल किए जा सकें। शासन को यह अच्छी तरह पता है कि अवैध कॉलोनियों को वैध करना उतना आसान नहीं है, जितना की उसकी चुनावी घोषणा कर देना। यही कारण है कि पूर्व में शासन को मुंह की खाना पड़ी थी और जबलपुर हाईकोर्ट ने एक ही फैसले में पूर्व से लेकर वर्तमान तक कि की गई वैध कॉलोनियों को भी पुन: अवैध घोषित कर दिया था। यही कारण है कि इस बार शिवराज सरकार ने सतर्कता बरती और अवैध कॉलोनियों को वैध करने की बजाय अधोसंरचना विकास के नियम लागू किए गए। यानी हकीकत में ये अवैध कॉलोनियां वैध नहीं की जा रही हैं, बल्कि इनमें सिर्फ सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए अधोसंरचना विकास का प्रावधान किया गया है, जबकि भाजपा के सारे नेता, अन्य जनप्रतिनिधि अवैध कॉलोनियों को वैध करने का ढोल पीट रहे हैं।
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