नई दिल्ली: यूनिफार्म सिविल कोड (UCC) यानी समान नागरिक संहिता को लागू करने पर उत्तराखंड सरकार ही नहीं, देश का राष्ट्रीय विधि आयोग भी रिपोर्ट तैयार कर रहा है. देखना ये होगा कि 22वां आयोग पिछले (21वें) आयोग की तर्ज पर यूसीसी को गैरजरूरी करार देता है या फिर जरूरी ठहराता है क्योंकि विधि आयोग की रिपोर्ट ही केंद्र सरकार द्वारा लाए जाने वाले यूसीसी कानून की आधारशिला बनेगी.
बीजेपी शासित राज्य सरकारों में उत्तराखंड यूसीसी को लाने पर कदम बढ़ा चुका है. इस क्रम में उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की अध्यक्ष जस्टिस (रिटायर्ड) रंजना प्रकाश देसाई ने आयोग के अध्यक्ष जस्टिस ऋतुरात अवस्थी से मुलाकात की थी. सूत्रों के मुताबिक, राज्य सरकार को यूसीसी पर सुझाव देने के साथ विधि आयोग अलग से एक रिपोर्ट तैयार कर रहा है. यह रिपोर्ट पूरे देश में यूसीसी लागू करने के पहलू पर होगी, जो केंद्र सरकार को सौंपी जाएगी.
2022 में जस्टिस अवस्थी 22वें आयोग के अध्यक्ष बने
याद रहे कि 2016 में केंद्र सरकार ने यूसीसी लागू करने की व्यवहारिकता पर विचार करने को कहा था. 21वें आयोग ने 2018 में एक परामर्श पत्र जारी कर यूसीसी को गैरजरूरी करार दे दिया था. अगस्त, 2018 में 21वें आयोग का कार्यकाल खत्म हो गया और 4 साल तक आयोग के अध्यक्ष का पद खाली रहा. नवंबर, 2022 में जस्टिस अवस्थी 22वें आयोग के अध्यक्ष बने.
अगर 22वां विधि आयोग यूसीसी पर पिछले आयोग से उलट रिपोर्ट देगा तो केंद्र सरकार तत्काल कानून लाने के लिए कदम बढ़ाएगी. यूसीसी इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय समाज के तमाम संप्रदायों की परंपराओं और धर्म से जुड़ी किताबों पर संचालित होने वाले निजी कानूनों का स्थान लेने वाली संहिता होगी. सभी धर्म और पंथ के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने और भरण-पोषण से संबंधित एक जैसे कानून होंगे.
यूसीसी के मुद्दे पर देश के लोगों का मन टटोल रही सरकार
दूसरी ओर उत्तराखंड यूसीसी लागू करने की दौड़ में पहले आना चाहता है. संविधान का अनुच्छेद 44 उत्तराखंड को यह अधिकार प्रदान करता है. इस अनुच्छेद के मुताबिक राज्य सरकार (अर्थात, केंद्र सरकार या राज्य क्षेत्रों की सरकार) को यह मंजूरी देता कि राज्य समस्त नागरिकों के लिए यूसीसी लागू करने का प्रयास करे, जबकि मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात भी यूसीसी के संबंध में घोषणा कर चुके हैं. लेकिन, यह इतना आसान है नहीं, जितना सुनने या कहने में लगता है.
गत 9 साल से केंद्र में बीजेपी की अगुवाई में सरकार यूसीसी के मुद्दे पर देश के लोगों का मन टटोल रही है. राजनीतिक पृष्ठभूमि पर गौर करें तो बीजेपी के लिए यूसीसी का मसला जनसंघ के समय से जुड़ा है, जबकि 1989 से बीजेपी ने यूसीसी को अपने घोषणापत्र में शामिल कर लिया. अप्रैल 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में पार्टी मुख्यालय में यूसीसी पर संकल्प पत्र भी जारी किया गया था.
कानून मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो सरकार को यूसीसी पर 22वें विधि आयोग की रिपोर्ट का इंतजार है. माना जा रहा है कि उत्तराखंड सरकार का यूसीसी पर ड्राफ्ट तैयार होने से पहले आयोग यूसीसी पर अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक कर देगा. उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कहा है कि देश में अलग-अलग निजी कानून की वजह से भ्रम की स्थिति बन जाती है. इसके बावजूद देश में यूसीसी लागू करने के लिए कोई ठोस कोशिश नहीं की गई.
यूसीसी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि करीब 200 पुरानी
यूसीसी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि करीब 200 पुरानी है. ब्रिटिश नियंत्रण के दौरान 1833 में चार्टर अधिनियम बनाया गया था. इसी अधिनियम के तहत 1835 में पहला विधि आयोग बना, जिसके अध्यक्ष लार्ड मैकाले थे. तब से अब तक देश में यूसीसी लागू नहीं किया जा सका है, क्योंकि देश में हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिक्ख से इतर विभिन्न धर्म व पंथ के लोग अपनी परंपराओं तथा रितियों के मुताबिक विवाह, तलाक और भरण-पोषण निभाते हैं, जबकि उत्तराधिकार और गोद लेने के लिए निर्धारित कानून हैं. 1955 में लाए गए हिन्दू विवाह अधिनियम से पहले हिन्दुओं में तलाक का कोई प्रावधान नहीं था, क्योंकि हिन्दू धर्म में तलाक जैसी कोई व्यवस्था नहीं थी.
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