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    बायपास कंट्रोल एरिया में मंजूर 22 अभिन्यास एक साथ निरस्त

    August 10, 2021

    • कलेक्टर मनीष सिंह के निर्देश पर नगर तथा ग्राम निवेश विभाग ने जारी की अनुमतियां रोकी…
    • अग्निबाण ने ही कंट्रोल एरिया की लूट का किया था खुलासा और पलटवाया आदेश, मगर उसका भी दुरुपयोग

    इंदौर। बायपास के दोनों ओर 45-45 मीटर का कंट्रोल एरिया नेशनल हाईवे अथॉरिटी ने छुड़वा रखा है, जिसे मास्टर प्लान में बफन झोन भी कहा जाता है, जिसमें किसी भी तरह के निर्माण की अनुमति नहीं मिल सकती। लेकिन 4 साल पहले एक गोल-मोल विभागीय आदेश के जरिए भोपाल में बैठे लोक निर्माण विभाग और नगर तथा ग्राम निवेश के अफसरों ने कंट्रोल एरिया में 12 मीटर गहराई तक सर्विस रोड से लगे आगे के एरिया को छोडक़र शेष 33 मीटर में 13 मीटर ऊंचाई तक की बिल्डिंगों के निर्माण को मंजूरी दे डाली। बायपास पर हुई इस भू-डकैती का खुलासा ना सिर्फ अग्निबाण ने किया बल्कि उक्त संशोधित विभागीय आदेश भी निरस्त करवाया , लेकिन उसकी जगह किये नए प्रावधान बैंक, एटीएम, सर्विस स्टेशन, पार्किंग लॉट और ऐसे अन्य उपयोग के नाम पर जमीनी जादूगरों ने नगर तथा ग्राम निवेश से कंट्रोल एरिया में अनुमति ले ली। मगर कलेक्टर मनीष सिंह की सख्ती के चलते पिछले दिनों ये सभी 22 अभिन्यास एक साथ नगर तथा ग्राम निवेश ने निरस्त कर दिए।


    इंदौर बायपास की चौड़ाई 60 मीटर सर्विस रोड सहित है, जिसमें दोनों तरफ 45-45 मीटर का कंट्रोल एरिया छोड़ा गया है ,जिसे मिलाकर कुल चौड़ाई 150 मीटर होती है , दोनों तरफ सर्विस रोड के बाद 45-45 मीटर के कंट्रोल एरिया में किसी तरह के निर्माण की अनुमति 2017 तक नहीं दी जाती थी। दरअसल इंदौर का मास्टर प्लान 01.01.2008 से लागू किया गया, जिसमें स्केल पर 150 मीटर चौड़ा बायपास ही दर्शाया गया है और कंट्रोल एरिया के बाद ही नगर तथा ग्राम निवेश द्वारा अभिन्यास मंजूर करने के बाद पहले पंचायत और फिर नगर निगम द्वारा बिल्डिंग परमिशन दी जाती रही है। नेशनल हाईवे एक्ट में हालांकि स्पष्ट प्रावधान है कि किसी भी हाईवे या बायपास पर सीधी एंट्री नहीं ली जा सकती, जिसके चलते हाईकोर्ट में लगी अग्निबाण प्रतिनिधि राजेश ज्वेल की जनहित याचिका के बाद दोनों तरफ सर्विस रोड का निर्माण किया गया। लेकिन चार साल पहले 2017 में बड़ी होशियारी से कंट्रोल एरिया को लूटने का खेल किया गया और लोक निर्माण विभाग के परिपत्र 23.02.2000 को निरस्त करते हुए भारत सरकार के एक पुराने परिपत्र 13.01.1977 को आधार बनाकर कंट्रोल एरिया में अनुमति दिए जाने का प्रपंच रचा गया। जबकि इसके पूर्व अधिनियम की धारा 30 के तहत नगर तथा ग्राम निवेश अभिन्यास मंजूर करता रहा, लेकिन तत्कालीन लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव और संचालक ने एक गोल-मोल विभागीय पत्र भिजवाते हुए 45 मीटर के कंट्रोल एरिया में 12 मीटर तक सर्विस रोड से लगे आगे के एरिया को छोडक़र शेष पीछे के 33 मीटर के एरिया में 13 मीटर ऊंचाई तक की बिल्डिंगों के निर्माण को मंजूरी देने का आदेश इंदौर भिजवा दिया , यानी 45 मीटर के कंट्रोल एरिया को घटाकर मात्र 12 मीटर का कर दिया गया और पीछे के 33 मीटर में निर्माण की अनुमति देकर करोड़ो-अरबों का फायदा जमीन मालिकों को पहुंचाने का इंतजाम भोपाली नेताओं और अफसरों ने कर दिया. लेकिन अग्निबाण ने इस बायपास के महा भू-घोटाले का भंडाफोड़ 27 अप्रैल 2017 को कर दिया और केन्द्रीय सडक़ परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तक इस मामले से जुड़े तथ्य भिजवाए नतीजतन नेशनल हाइवे अथॉरिटी ने भी इस संशोधन पर सख्त आपत्ति लेते हुए मप्र के लोक निर्माण विभाग को पत्र लिखे जिसके चलते तत्कालीन प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग विवेक अग्रवाल ने 45 मीटर के कंट्रोल एरिया के बदले प्रावधान को निरस्त कर नए सिरे से आदेश जारी किए, जिसमें पुलिस चौकी, बैंक, एटीएम, सर्विस सेंटर, पार्किंग लॉट से लेकर अन्य विशिष्ट श्रेणी की मंजूरियों को देने का ही प्रावधान कर दिया। लेकिन इंदौर के जमीनी जादूगरों ने इसका भी बेजा फायदा उठाया और बैंक, एटीएम, पार्किंग लॉट तथा सर्विस सेंटर, पेट्रोल पम्प के नाम पर होटल, मल्टीप्लेक्स, शैक्षणिक और अन्य तरह की वाणिज्यिक अनुमतियां हासिल कर ली। पिछले दिनों जब कलेक्टर मनीष सिंह के संज्ञान में यह गड़बड़ी लाई गई तो उन्होंने संयुक्त संचालक नगर तथा ग्राम निवेश एस के मुदगल को निर्देश दिए कि इन अभिन्यासों को निरस्त किया जाए। लिहाजा पिछले दिनों एक साथ सभी मंजूर 22 अभिन्यासों को निरस्त कर दिया गया। संयुक्त संचालक नगर तथा ग्राम निवेश श्री मुदगल के मुताबिक ये अनुमतियां शासन के संशोधित आदेश के परिपालन में जारी की गई थी। मगर जब पता चला कि इनका वाणिज्यिक इस्तेमाल किया जा रहा है और इसके चलते भविष्य में सर्विस रोड को चौड़ा करने के काम में भी परेशानी आएगी। लिहाजा इन सभी अभिन्यासों को स्थगित कर दिया गया है।

    मास्टर प्लान में संशोधन धारा 23 (क) से ही है संभव
    इंदौर के मास्टर प्लान में जो प्रस्तावित मार्ग संरचना मानचित्र है उसमें इंदौर बायपास की चौड़ाई 60 मीटर प्लस कंट्रोल एरिया लिखा है। यानी स्केल के मुताबिक कुल चौड़ाई 150 मीटर दर्शाई गई और 60 मीटर चौड़ाई के बाद दोनों तरफ 45-45 मीटर का कंट्रोल एरिया निर्धारित किया गया, जिनमें किसी भी तरह की गतिविधियां मान्य नहीं की जा सकती और 2008 से लेकर 2017 तक 9 वर्षों में सैंकड़ों अभिन्यास इसी अनुरूप मंजूर किए जाते रहे। मास्टर प्लान के किसी भी प्रावधान को किसी भी विभागीय आदेश के जरिए नहीं बदला जा सकता। इसके अधिकार मुख्यमंत्री या उनकी केबिनेट को भी नहीं है, बल्कि नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम 1973 की धारा 23 (क) के तहत हीे संशोधन-उपांतरण किए जा सकते हैं लेकिन बायपास पर धारा 23 (क) की प्रक्रिया को अपनाए बिना ही विभागीय अधिकारियों ने कंट्रोल एरिया 45 से घटाकर 12 मीटर का कर डाला था।

    बैंक व पार्किंग लॉट के नाम पर मल्टीप्लेक्स कराया मंजूर
    नगर तथा ग्राम निवेश ने जो 22 अभिन्यास कंट्रोल एरिया में मंजूर किए थे उन्हें अब स्थगित कर दिया है, उनमें खजराना, बिचौली मर्दाना, निपानिया, कैलोद कर्ताल, मुंडला नायता से लेकर अरंडिया और मांगलिया सडक़ की जमीनें शामिल रही। इन अनुमतियों में युनूस पटेल ने होटल का तो चुघ रियल इस्टेट ने मल्टीप्लेक्स कम शॉपिंग सेंटर, ओशियन मोटर्स ने सर्विस सेंटर तो कक्कड़ ने ऑटो सर्विस, रशमीत सतनामसिंह होरा ने शैक्षणिक, मेसर्स आर्क एंड कम्पनी ने बैंक तो प्रेम मोटर्स ने रिटेल शॉप स्वीकृत कराए थे। वहीं एचआरजे इंटरप्राइजेस ने होटल, तो अरविन्द मालवीय, देवेन्द्र पिता तेजकरण, शिवलतासिंह राठौर, गौरव आनंद, गोविंद जेठालाल चावला, लाखन सिंह पटेल, शैलेश पिता रमेशचंद्र, मेसर्स सुप्रीम लाइफ लिविंग, सुभाषचंद्र पिता रामविलास, अख्तर बी पति अब्दुल बशीर और श्रीमती रितिका पति कैलाशचंद्र सहगल आदि ने अन्य अनुमतियां हासिल कर ली थी।


    32 किलोमीटर लम्बे बायपास पर 5 करोड़ स्क्वेयर फीट जमीन करवाई थी फ्री
    इंदौर के जमीनी जादूगरों ने बायपास पर जो भू-डकैती डाली, उसमें छोटा-मोटा नहीं, बल्कि करोड़ों- अरबों का सुनियोजित घोटाला आने वाले कई वर्षों तक अंजाम दिया जाता । मास्टर प्लान के कड़े प्रावधान को गोलमोल विभागीय आदेश के जरिए बदलवाकर 32 किलोमीटर लंबे राऊ से मांगलिया तक के बायपास के दोनों ओर लगभग 5 करोड़ स्क्वेयर फीट से ज्यादा जमीन फ्री करवा ली जाती , जिन पर 13 मीटर ऊंचाई तक के बिल्डिंग निर्माण के प्रोजेक्ट आ जाते और हजारों करोड़ का मुनाफा होता . चार साल पहले ही अग्निबाण ने जब इस घोटाले का भंडाफोड़ किया था, तब ही मुक्त करवाई जमीन 10 हजार करोड़ रुपए से अधिक मूल्य की आंकलित की गई थी, जिस पर बनने वाले प्रोजेक्ट से और कई गुना अधिक मुनाफा होता।

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