भोपाल। मप्र के वन विभाग में किस तरह का जंगलराज चल रहा है, इसका उदाहरण माधव नेशनल पार्क में सामने आया है। यहां कोरिडोर की 2000 हेक्टेयर भूमि को अधिकारियों-कर्मचारियों ने प्रति हेक्टेयर 2000 रूपए की दर से खेती के लिए दे दिया था। यानी सालाना 4 लाख रूपए में पार्क के स्टाफ ने वन भूमि को गिरवी रख दिया था। यही वजह रही कि 2008 के बाद जितने भी डायरेक्टर और स्टाफ आते-जाते रहे, वे सभी खेती कर रहे किसानों से राशि वसूलते रहे हैं। करीब 13 साल बाद कब्जेधारियों को बेदखल किया गया है।
सूत्रों का कहना है कि 2008 में बाघ पुनस्र्थापना के तहत माधव नेशनल पार्क से 2000 हेक्टेयर कॉरिडोर एरिया को कब्जेधारियों से हटाया गया था। लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत से उक्त जमीन पर फिर से खेती होने लगी। अब जाकर पार्क प्रबंधन ने 2000 हेक्टेयर कॉरिडोर एरिया को कब्जेधारियों से बेदखल कराया। यह कार्रवाई तब हुई, जब प्रमुख सचिव अशोक वर्णवाल और प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी आलोक कुमार ने बेदखली की कार्रवाई के सख्त निर्देश दिए थे।
मुआवजा मिलने के बाद भी जमे रहे
दिलचस्प पहलू यह है कि कब्जाधारियों में ज्यादातर लोग वही थे जिन्होंने 2008 में बाघ पुनस्र्थापना के तहत लाखों रुपए मुआवजा ले चुके थे। यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि 2008 में वन विभाग ने माधव नेशनल पार्क से विस्थापन होने के लिए 27 करोड़ 99 लाख से अधिक का भुगतान बतौर मुआवजा दिया गया था। वर्ष 2008 में मुआवजा लेने के बाद भी मामौनी, हरनगर, अर्जुनगवा, चक्डोगरा और लखनगवा गांव के लोग पार्क के कोरिडोर एरिया माता की 2000 हेक्टेयर जमीन में खेती कर रहे थे। ग्रामीणों द्वारा खेती करने के कारण 2007-08 से 2016-17 में बाघ पुनस्र्थापना की कार्रवाई लंबित रही। इस बीच माधव नेशनल पार्क में कई डायरेक्टर आए और चले गए, किसी ने भी अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई नहीं की। ऐसे या तो तय हो गया कि उनकी पार्क के कोरिडोर जमीन पर अवैध खेती कराने में कहीं न कहीं उनकी संलिप्तता रही है। फील्ड से मिली जानकारी के अनुसार 2017-18 में सबसे अधिक अतिक्रमण हुआ। बताया जाता है कि वर्ष 2017-18 से लेकर अब तक एक दर्जन से अधिक आईएफएस अफसर माधव नेशनल पार्क के संचालक रह चुके हैं। इन अफसरों की भूमिका की जांच होनी चाहिए।
राजस्व एवं वन विभाग की संयुक्त टीम ने की कार्रवाई
माधव नेशनल पार्क के डायरेक्टर सीएस निनामा ने प्रमुख सचिव अशोक वर्णवाल के निर्देश मिलने के बाद स्थानीय जनप्रतिनिधियों और वन्य प्राणी प्रेमियों के साथ बैठक कर पहले तो ग्रामवासियों को कोरिडोर की भूमि से हटने के लिए समझाने की कोशिश की। जब वे नहीं माने तो राजस्व एवं वन विभाग की संयुक्त टीम बनाकर पुलिस की मदद से बेजा कब्जा हटाने की कार्रवाई की। माधव नेशनल पार्क के कॉरिडोर की जमीन शहर से लगी हुई है।
इसकी कीमत 1500 करोड़ रुपए से अधिक आंकी गई है।
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