नई दिल्ली: साल 2023 (year 2023) कई मायने में खास रहा. याद करने की कोशिश कीजिए, 2023 से पहले ऐसा कब हुआ था जब शतरंज की खबर हर अखबार के पहले पन्ने पर छपी हो? शतरंज के किसी खिलाड़ी की तस्वीर अखबार के पहले पन्ने पर छाई हुई हों. क्रिकेट को धर्म समझने वाले देश में अव्वल तो पहले पन्ने पर दूसरे खेलों की खबरें कम ही होती हैं, होती भी हैं तो किसी ना किसी विवाद के चलते. शतरंज (chess) तो इस फेहरिस्त में भी नहीं है. लेकिन 2023 में इतिहास रचा गया और ये इतिहास रचा 18 साल के प्रज्ञानंदा (Pragyananda) ने. भारत के ग्रैंडमास्टर प्रज्ञानंदा (Grandmaster Pragyananda of India) ने बहुत कम उम्र में अपने खेल का लोहा मनवाया.
यूं तो पिछले कुछ साल से वो लगातार अपने खेल से दुनिया को हैरान कर रहे थे, इतिहास रच रहे थे. लेकिन 2023 में उन्होंने बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल की. प्रज्ञानंदा ने 2023 फिडे वर्ल्ड चेस टूर्नामेंट के फाइनल में जगह बनाई. उन्होंने सेमीफाइनल में फाबियानो कारुआना को 3.5 – 2.5 से हराकर ये मुकाम हासिल किया था. फाइनल में इस खिलाड़ी का सामना पांच बार के चैंपियन नॉर्वे के अनुभवी मैग्नस कार्लसन से था. प्रज्ञानंदा विश्वनाथ आनंद के बाद इस टूर्नामेंट के फाइनल में पुहंचने वाले दूसरे भारतीय खिलाड़ी बने थे.
फाइनल में आर प्रज्ञानंद हार गए, वो फिडे चेस वर्ल्ड कप का खिताब जीतने से चूक गए. ये सच है कि फाइनल में दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी मैग्नस कार्लसन ने उन्हें हराकर करोड़ों भारतीयों का दिल तोड़ दिया. लेकिन ये भी सच है कि दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी के खिलाफ वो जिस तरह से खेले, उन्होंने पूरी दुनिया का दिल जीत लिया. कार्लसन ने टाईब्रेक में प्रज्ञानंद को 1.5 0.5 हराया. लेकिन इससे पहले खिताबी मुकाबले में उन्होंने कार्लसन को जबरदस्त टक्कर दी. शुरुआती 2 राउंड ड्रॉ पर खत्म हुए. इसके बाद दोनों के बीच टाईब्रेक खेला गया था. जहां 25 मिनट के पहले रैपिड गेम में दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी ने 45 चालों में बाजी मारी और 1-0 से बढ़त बनाई. दूसरा टाईब्रेक मुकाबला 22 चालों के बाद ड्रॉ रहा. प्रज्ञानंद के पास अभी वापसी का मौका था, लेकिन वो चूक गए.
दरअसल पहला मुकाबला जीतने के बाद कार्लसन ने भी समझदारी के साथ डिफेंडिंग खेल दिखाया था. पिछले कुछ मुकाबलों में प्रज्ञानंदा ने कार्लसन को मात भी दी थी. जाहिर है कार्लसन इस बार काफी सतर्क थे. उनके पास अनुभव भी ज्यादा है. आर प्रज्ञानंदा के फाइनल तक पहुुंचने का सफर भी शानदार था. टूर्नामेंट के पहले दौरे में प्रज्ञानंदा को बाय मिला. इसके बाद दूसरे दौर में उन्होंने फ्रांस के मैक्सिम लागार्डे को हराया. तीसरे दौर में चेक गणराज्य के डेविड नवारा और चौथे दौर में उन्होंने दूसरे नंबर के खिलाड़ी अमेरिका के हिकारू नाकामूरा को मात दी. 5वें दौर में उन्होंने हंगरी के फेरेंग बेरकेस को, छठे दौर में हमवतन अर्जुन एरगियासी को और फिर दुनिया के तीसरे नंबर के खिलाड़ी फेबियानो कारुआना को सेमीफाइनल में हराकर उन्होंने फाइनल तक का सफर तय किया था.
आपको जानकर ताज्जुब होगा कि आर प्रज्ञानंदा ने अपनी बहन के शौक से प्रभावित होकर शतरंज खेलना शुरू किया था. सिर्फ तीन साल की उम्र में वो इस खेल से जुड़ गए थे. इसके पीछे एक बहुत दिलचस्प कहानी भी है. उनकी बड़ी बहन वैशाली को इसलिए शतरंज का खेल सिखाया गया जिससे वो टीवी पर कार्टून देखने में कम समय बिताए. प्रज्ञानंदा की शतरंज यात्रा उस समय शुरू हुई थी जब ज्यादातर बच्चों को पता भी नहीं होता कि वो जीवन में क्या करेंगे. परिवार का बैकग्राउंड बहुत साधारण था. पिता रमेशबाबू बैंक में नौकरी करते थे. मां नागलक्ष्मी टूर्नामेंट के लिए दोनों बच्चों के साथ जाती थीं.
प्रज्ञानंदा की बहन और महिला ग्रैंडमास्टर वैशाली ने एक इंटरव्यू में बताया था कि शतरंज में उनकी रुचि एक टूर्नामेंट जीतने के बाद बढ़ी थी इसके बाद जब उनका छोटा भाई भी इस खेल को पसंद करने लगा तो उन्हें और मजा आया. इसी इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि जब वो 6 साल के आसपास की थी तो काफी कार्टून देखती थी. उनके पैरेंट्स नहीं चाहते थे कि वो टेलीविजन से चिपकी रहें और उन्होंने वैशाली का नाम शतरंज और ड्रॉइंग की क्लास में लिखा दिया. यहीं से कहानी बदल गई. बाद में प्रज्ञानंदा भी शतरंज में डूब गए.
वैसे आपको बता दें कि प्रज्ञानंदा को क्रिकेट भी पसंद है और उसे जब भी समय मिलता है तो वो मैच खेलने के लिए जाते हैं. आज प्रज्ञानंद स्टार हैं. 2023 में भारत ने खेल की दुनिया में जो बड़ी उपबल्धियां हासिल की हैं उसमें उनका बड़ा रोल है. अभी उनकी उम्र सिर्फ 18 साल है. यानी अगले कई साल तक खेलों की दुनिया में चमकने वाला एक सितारा भारत को मिल चुका है.
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