शिक्षा मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चयनित हुए एक टीचर ने मध्यप्रदेश के स्कूल की दिशा ही बदलकर रख दी. इस टीचर ने लड़कियों के एक प्राइमरी स्कूल को ज्ञान का केंद्र बना दिया और बुंदेलखंड स्थित इस स्कूल को अलग पहचान दिलाई. अकेले दम पर शिक्षा की मशाल बुलंद करने वाले इस टीचर का ये सफर कितना मुश्किल और उम्मीद भरा रहा, आइए जानते हैं.
12 साल पहले हुई थी पोस्टिंग
दरअसल, हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार 45 साल के संजय जैन की पोस्टिंग 12 साल पहले टीकमगढ़ जिले के गांव डुंडा स्थित एक स्कूल में हुई थी. तब वह इस स्कूल के अकेले टीचर थे और उनसे पढ़ने वाले बच्चों की संख्या थी महज 18. लेकिन मध्यप्रदेश स्कूल विभाग के अधिकारियों और स्थानीय लोगों की मानें तो संजय जैन ने हार नहीं मानी और बच्चों की पढ़ाई में दिलचस्पी जगाने के लिए नए-नए तरीके आजमाने शुरू कर दिए. पढ़ाई के नए और अनोखे तरीकेशिक्षा की मशाल जलाने के इस अभियान में संजय जैन ने कम से कम 80 नए और अनोखे तरीकों से पढ़ाई कराने का करिश्मा किया. इस बारे में संजय जैन कहते हैं, जब मैंने स्कूल की हालत देखी तो काफी निराश हुआ. तब कुल 18 में से महज 8 ही बच्चे स्कूल में उपस्थित थे. मगर मैंने हार नहीं मानी. सबसे पहले मैंने स्थानीय लोगों की मदद से स्कूल की साफ सफाई कराई. मैंने बच्चों को अधिक से अधिक संख्या में स्कूल लाने के लिए डोर टू डोर कैंपेन चलाया.
हर बच्चे का एक पौधा
संजय जैन बताते हैं कि बहुत कोशिशों के बाद कुछ सुधार तो हुआ, लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल आने के लिए तैयार नहीं थे. फिर मुझे एक आइडिया आया. चूंकि बुंदेलखंड में पेड़-पौधों की बेहद अहमियत है तो मैंने इसका लाभ उठाने का फैसला किया. इसके तहत मैंने हर बच्चे के नाम और रोलनंबर लिखा एक-एक पौधा लगाया लेकिन बच्चों को इन्हें घर ले जाने की अनुमति नहीं थी. पौधे स्कूल में ही लगाए गए. इसके बाद धीरे-धीरे बच्चे अपने-अपने पौधे की देखभाल करने स्कूल आने लगे.
दीवारों से लेकर जमीन तक को जानकारी से रंग दिया
पौधों की तकनीक ने पुराने बच्चों को तो नियमित रूप से स्कूल आने का रास्ता निकाल लिया, लेकिन नए बच्चों को आकर्षित करना अब भी चुनौतीपूर्ण काम था. इसके लिए संजय जैन ने स्कूल की दीवारों को खूबसूरत रंगाों से रंगने का फैसला किया. कुछ स्थानीय लोगों की मदद और करीब दस हजार रुपये की खुद की सेविंग्स से उन्होंने सभी दीवारों पर अल्फाबेट, नंबर्स, टेबल्स समेत अन्य चीजें लिखवाई. दीवार कम पड़ गई तो जमीन पर भी ऐसा ही किया ताकि बच्चों की जनरल नॉलेज भी बढ़ती रहे.
संजय जैन ने अपने प्रयासों से सरकारी स्कूलों के प्रति लोगों का नजरिया भी बदल दिया. अब उनके स्कूल में 200 पौधे हैं. न केवल पुराने बच्चे नियमित रूप से स्कूल आते हैं, बल्कि नए बच्चे भी आकर्षित होते हैं. प्रोजेक्टर और लैपटॉप की मदद से वे बच्चों को तकनीकी रूप से भी दक्ष बना रहे हैं.
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