इंदौर। एक तरफ प्रदेश की इंदौर सहित तीनों बिजली कम्पनियां घाटे में हैं, जिसके चलते हर साल नियामक आयोग के समक्ष याचिकाएं दायर कर बिजली की दरें बढ़वा लेती हैं। अभी 1500 करोड़ रुपए का राजस्व हासिल करने के लिए कुछ दरों को बढ़ाने की याचिकाएं दायर की गई हैं, तो दूसरी तरफ विधानसभा में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि प्रदेश सरकार ने जिन निजी कम्पनियों से बिजली खरीदी के अनुबंध किए हैं उन्हें 1774 करोड़ रुपए का भुगतान बिना बिजली खरीदे ही अनुबंध के चलते कर डाला। राऊ के कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी द्वारा पूछे गए तारांकित प्रश्न के जवाब में ऊर्जा मंत्री ने यह जानकारी दी है, जिसके चलते पिछले 3 वर्षों में इतनी बड़ी राशि का भुगतान निजी कम्पनियों को किया गया, तो दूसरी तरफ प्रदेश की जनता महंगी बिजली खरीदने को मजबूर है।
अगर मध्यप्रदेश की बिजली कम्पनियों की कोई जांच एजेंसी ईमानदारी से जांच करे तो देश का सबसे बड़ा बिजली घोटाला उजागर हो सकता है। नई दिल्ली की केजरीवाल सरकार पर आरोप लगाया जाता है कि उसने मुफ्त बिजली, पानी बांटकर चुनाव जीते। जबकि हकीकत यह है कि दिल्ली में बिजली के घोटाले रोककर जनता को सस्ती बिजली उपलब्ध कराई जा रही है। जबकि मध्यप्रदेश में जितनी बिजली उतने दाम का नारा देकर सरकार बनाने वाली भाजपा ने लगभग हर साल बिजली की कीमतों में बढ़ोतरी की है। अभी विधानसभा में राऊ के विधायक जीतू पटवारी ने एक सवाल पूछा, जिसके जवाब में ऊर्जा मंत्री ने यह चौंकाने वाली जानकारी दी कि अनुबंध के चलते निजी बिजली कम्पनियों से जो प्लांट लगवाए गए उसके कारण शासन को बिजली बिना जरूरत के भी लेना पड़ती है और तीन सालों में तो बिना बिजली खरीदे ही 1774 करोड़ रुपए का भुगतान कर डाला।
2019-20 में 494.25, 2021 में 908.27 और 2021-22 में 371.19 करोड़ रुपए का भुगतान बिना बिजली खरीदे ही स्थायी लागत के रूप में कर डाला। जबकि दूसरी तरफ इंदौर सहित प्रदेश की तीनों बिजली कम्पनियां घाटे का हवाला देकर हर साल बिजली की कीमतों में इजाफा करवा लेती है। अभी अग्निबाण ने ही यह उजागर किया कि नियामक आयोग के समक्ष नए सिरे से कम्पनियों ने याचिकाएं दायर की हैं, जिसमें 1500 करोड़ रुपए से अधिक का राजस्व अतिरिक्त हासिल किया जाएगा, जिसमें 602 करोड़ रुपए इंदौर की पश्चिमी विद्युत वितरण कम्पनी हासिल करेगी और बदले में 3 से 4 फीसदी बिजली के दाम बढ़ाए जाएंगे। चूंकि अगले साल विधानसभा चुनाव हैं, इसलिए बिजली के दामों में कम बढ़ोतरी की जा रही है। वरना इसके पूर्व के वर्षों में 8 से 10 फीसदी तक बिजली के दाम बढ़ाए गए हैं। यानी एक तरफ सरकार बिना बिजली खरीदे निजी कम्पनियों को 1774 करोड़ रुपए का भुगतान कर रही है, तो दूसरी तरफ घाटे का हवाला देकर बिजली कम्पनियां दर वृद्धि कर उपभोक्ताओं की जेब काट रही है।
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