अजनाला: पंजाब के अजनाला (Ajnala) के एक कुंए से बड़े पैमाने पर मिले मानव कंकाल (Skeletons) का रहस्य सुलझ गया है. सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) के वैज्ञानिकों ने पंजाब विश्वविद्यालय, बीरबल साहनी संस्थान और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के अन्य शोधकर्ताओं के साथ अपनी रिसर्च में यह पाया है कि अजनाला में नरसंहार हुआ था और भारतीय जवानों को मारकर उनके शवों को कुएं में फेंक दिया गया था.
इतिहासकारों ने कही थी ये बात
वैज्ञानिकों ने अजनाला के पुराने कुंए से निकले अवशेषों के डीएनए और आइसोटोप एनालिसिस के बाद यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि ये 160 साल पुराने कंकाल गंगा किनारे रहने वाले लोगों के हैं. कई इतिहासकार मानते रहे हैं कि ये कंकाल भारत, पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान दंगों में मारे गए लोगों के थे. जबकि कुछ ऐतिहासिक दस्तावेजों में इस बात का उल्लेख है कि कंकाल शहीद भारतीय सैनिकों के हैं, जिन्होंने 1857 में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह किया था.
2014 में निकाले गए थे कंकाल
हालांकि, वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी के कारण इन सैनिकों की पहचान और भौगोलिक उत्पत्ति पर लंबी बहस चलती रही है, लेकिन अब काफी कुछ साफ हो गया है. बता दें कि पंजाब के अजनाला के एक कुएं से मानव कंकालों के अवशेष 2014 में निकाले गए थे. इन कंकालों की वास्तविकता का पता लगाने के लिए पंजाब विश्वविद्यालय के डॉ. जेएस सेहरावत ने सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) हैदराबाद, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट, लखनऊ और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर अवशेषों का डीएनए और आइसोटोप अध्ययन किया. इस अध्ययन में हड्डियों, खोपड़ी और दांत के डीएन टेस्ट से इस बात की पुष्टि हुई है कि मरने वाले सभी उत्तर भारतीय मूल के हैं.
इस तरह सामने आई सच्चाई
शोध में 50 सैंपल डीएनए और 85 सैंपल आइसोटोप एनालिसिस के लिए इस्तेमाल किए गए. डीएनए विश्लेषण से लोगों के अनुवांशिक संबंध को समझने में मदद मिलती है और आइसोटोप एनालिसिस भोजन की आदतों पर प्रकाश डालता है. दोनों विधियों ने इस बात का समर्थन किया कि कुएं में मिले मानव कंकाल पंजाब या पाकिस्तान में रहने वालों के नहीं थे, बल्कि डीएनए सीक्वेंस यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ मेल खाते हैं.
‘परिणाम ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुरूप’
डॉ के. थंगराज, मुख्य वैज्ञानिक, सीसीएमबी ने कहा कि शोध के परिणाम इतिहास को साक्ष्य आधारित तरीके से स्थापित करने में मदद करते हैं. यह अध्ययन ऐतिहासिक मिथकों की जांच में डीएनए आधारित तकनीक की उपयोगिता को भी दर्शाता है. वहीं, रिसर्च के प्रथम लेखक डॉ जेएस सेहरावत ने कहा कि शोध के परिणाम ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुरूप हैं कि 26वीं नेटिव बंगाल इन्फैंट्री बटालियन में बंगाल, ओडिशा, बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से के लोग शामिल थे.
मियां-मीर में तैनात थे सैनिक
ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, इस बटालियन को पाकिस्तान के मियां-मीर में तैनात किया गया था और उसके सैनिकों को विद्रोह के चलते ब्रिटिश अधिकारियों ने मार डाला था. दरअसल, ब्रिटिश सेना ने उन्हें अजनाला के पास पकड़ लिया था, फिर उन्हें मौत के घाट उतारकर उनके शवों को कुएं में फेंक दिया था. इस टीम के प्रमुख शोधकर्ता और प्राचीन डीएनए के विशेषज्ञ डॉ नीरज राय ने कहा कि टीम द्वारा किए गए वैज्ञानिक शोध इतिहास को अधिक साक्ष्य-आधारित तरीके से देखने में मदद करते हैं. डीएनए अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बीएचयू के जूलॉजी विभाग के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा कि अध्ययन के निष्कर्ष भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ देंगे.
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