इंदौर। शासन, निगम, मजदूरों और कोर्ट के बीच हुकुमचंद मिल की जमीन बीते कई वर्षों से फुटबॉल बनी हुई है। अग्निबाण लगातार इस जमीन को लेकर खुलासे करता रहा है और अभी पिछले दिनों ही मुंबई डीआरटी ने 1679 करोड़ की देनदारी के बदले जमीन की कीमत घटते हुए मात्र 385 करोड़ ही आंकी। जबकि निगम खुद 7 साल पहले कोर्ट में ही दिए शपथ-पत्र के आधार पर जमीन की कीमत 1500 करोड़ रुपए आंक चुका है। अब कल हाईकोर्ट ने भी जमीन की खटाई कीमत पर मुंबई डीआरटी से सवाल पूछे और फिर से वैल्युएशन करवाने के निर्देश देते हुए अगली सुनवाई की तारीख 13 जुलाई तय की है, जिसके चलते नीलामी की प्रक्रिया फिर आगे बढ़ जाएगी।
हुकुमचंद मिल की 42.49 एकड़ जमीन का भू-उपयोग पहले औद्योगिक था, तब मुंबई डीआरटी ने जमीन की कीमत 400 करोड़ रुपए आंकी थी, उसके बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर शासन ने नगर तथा ग्राम निवेश के जरिए मिल की जमीन का उपयोग परिवर्तित करवा दिया और अब वाणिज्यिक तथा आवासीय भू-उपयोग हो गया। मगर मुंबई डीआरटी ने जमीन की कीमत बढ़ाने की बजाय उल्टा 15 करोड़ रुपए घटा दी और अभी जो नीलामी की विज्ञप्ति जारी की उसमें 385 करोड़ रुपए आरक्षित मूल्य तय किया गया, जिसका खुलासा अग्निबाण ने किया और फिर कल यही सवाल हाईकोर्ट ने भी पूछे और मुंबई डीआरटी से कहा कि बढऩे की बजाय उलटा जमीन की कीमत घट कैसे गई। लिहाजा फिर से मूल्यांकन कराया जाए।
मजे की बात यह है कि 6 साल पहले डीआरटी ने जमीन की कीमत 400 करोड़ आंकी, तो 7 साल पहले निगम ने कोर्ट में दिए शपथ-पत्र में जमीन की कीमत लगभग 1500 करोड़ रुपए बताई। वर्तमान में तो रियल इस्टेट कारोबार ऊपर चढ़ रहा है और इंदौर के चारों तरफ जमीनों के भाव बेतहाशा बढ़ गए, जबकि बीच शहर और घने क्षेत्र में मौजूद हुकुमचंद मिल की जमीन की कीमत मुंबई डीआरटी ने घटा दी। जबकि वर्तमान में इसकी कीमत दो हजार करोड़ रुपए से कम नहीं है। वहीं बैंकों के भी चंद करोड़ों रुपए के लोन की राशि भी ब्याज-बट्टे सहित बढक़र 1679 करोड़ तक पहुंच गई और जमीन की कीमत 385 करोड़ रुपए ही बताई गई। यानी मुंबई डीआरटी की मानें तो जमीन बेचने के बाद भी लगभग 1400 करोड़ की देनदारी फिर भी बच जाएगी। अब मिल मजदूर संघर्ष समिति के नरेन्द्र श्रीवंश के मुताबिक अब अगली सुनवाई 13 जुलाई को होना है।
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