नई दिल्ली: देश के नाम को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं काफी तेज हो गई हैं. इंडिया (India) का नाम हटाकर भारत (Bharat) रखने को लेकर दोनों तरह की यानी पक्ष और विपक्ष (Pros and Cons) की आवाजें सुनाई दे रही हैं. अभी तक सरकार (Goverment) की ओर से कोई आधिकारिक बयान (official statement) नहीं आया है. कयासों का बाजार गर्म है. जिसमें कहा जा रहा है कि देश की संसद (country’s parliament) में जो स्पेशल सेशंस बुलाया गया है, उसमें देश के नाम से इंडिया हटाकर सिर्फ भारत हर रहने दिया जाएगा.
इसको लेकर विधेयक भी लाया जा सकता है. अब जब इस तरह की खबर देश में फैलती है तो कई और दूसरी खबरें भी सामने आती है. अब जो खबर सामने आई है वो ये है कि इंडिया को भारत में तब्दील करने में सरकार का 14 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हो सकता है. आइए आपको भी बताते हैं आखिर ये खबर कहां निकली है और इसका गणित क्या है?
कितना आ सकता है खर्च?
आउटलुक इंडिया और ईटी की रिपोर्ट के अनुसार देश का नाम इंडिया से बदलकर भारत करने की एस्टीमेटिड कॉस्ट 14304 करोड़ रुपये हो सकती है. इसका कैलकुलेशन साउथ अफ्रीका के लॉयर डेरेन ऑलिवियर ने किया है. जिन्होंने इसका एक पूरा फॉर्मूला भी तैयार किया है. वास्तव में 2018 में स्वैजीलैंड का नाम बदलकर इस्वातीनि हुआ था. देश का नाम बदलने का उद्देश्य औपनिवेशिकता से छुटकारा पाना था. उस समय ऑलिवियर ने देश का नाम बदलने में होने वाले खर्च कैलकुलेशन करने के लिए फॉर्मूला तैयार किया था.
क्या है कैलकुलेशन
उस समय डेरेन ऑलिवियर ने स्वैजीलैंड का बदलने के प्रोसेस की तुलना किसी भी बड़े कॉर्पोरेट की रीब्रांडिंग से की थी. ऑलिवियर के मुताबिक बड़े कॉरपोरेट का एवरेज मार्केटिंग कॉस्ट उसके कुल रेवेन्यू का करीब 6 फीसदी होता है. वहीं रीब्रांडिंग में कंपनी के कुल मार्केटिंग बजट का 10 फीसदी तक खर्चा हो सकता है. इस फॉर्मूले के अनुसार ऑलिवियर का अनुमान था कि स्वेजीलैंड का नाम इस्वातीनि करने में 60 मिलियन डॉलर का खर्च आ सकता है. अब अगर इस फॉमूले को एशिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी पर लागू करें तो वित्त वर्ष 2023 में देश का रेवेन्यू 23.84 लाख करोड़ रुपये था. इसमें टैक्स और नॉन टैक्स दोनों तरह के रेवेन्यू शामिल थे.
क्या है नाम बदलने की हिस्ट्री?
इससे पहले भी देश का नाम बदलने के प्रोसेस पर काफी बार विचार किया जा चुका है. इसकी सबसे बड़ी वजह एडमिन लेवल पर सुधार और औपनिवेशिक प्रतीकों से छुटकारा जैसी बातें भी शामिल हैं. साल 1972 में श्रीलंका में भी नाम बदलने का प्रोसेस शुरू हुआ और करीब 40 साल में पुराने नाम सीलोन को कंप्लीटली हटाया गया. 2018 में स्वेजीलैंड के नाम भी बदलाव हुआ और इस्वातीनि किया गया.
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