उज्जैन। जिला अस्पताल में कुछ साल पहले तक 17 से अधिक एम्बुलेंस थीं लेकिन एक-एक कर यह कबाड़ होती गई और अब मात्र 5 बची हैं। चरक और माधवनगर अस्पताल के लिए एक भी एम्बुलेंस की व्यवस्था नहीं की गई है। जिला अस्पताल के सीएमएचओ और सिविल सर्जन भी यहाँ पर सुविधाएँ उपलब्ध कराने में रुचि नहीं लेते, वे केवल अपनी ड्यूटी पूरी करने आते हैं।
जिला अस्पताल में कुछ साल पहले तक 15 से ज्यादा एम्बुलेंस थीं लेकिन रखरखाव और शासन की नजरअंदाजी के चलते ये एम्बुलेंस एक-एक कर खटारा होती गई और 17 में से अब मात्र 5 एम्बुलेंस बची हैं जिनमें से एक शव को ले जाने के काम आती है और तीन डॉक्टर और मरीजों को लाने-ले जाने में लगी रहती हैं और बची एक तो वह वीआईपी के लिए आरक्षित रहती है। इसके अलावा 108 वाहन नाकों और विभिन्न स्थानों पर रहते हैं। जिला अस्पताल में ऐसा कोई अधिकारी भी नहीं आ रहा है जो यहां की व्यवस्था सुधरवाए। सीएमएचओ या सिविल सर्जन केवल ड्यूटी करने आते हैं और उन्हें अस्पताल की व्यवस्थाओं को सुधारने में रुचि नहीं रहती। मरीजों की यहाँ आकर अच्छी खासी फजीहत होती है। हालात यह हैं कि वीआईपी ड्यूटी में नियुक्त चिकित्सक अपने घर पर रहते हैं और जरुरत पडऩे पर उन्हें उनके घर तक लेने जाना पड़ता हैं। इसके अलावा यदि मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है तो अस्पताल में एम्बुलेंस नहीं मिलती और परिजनों को प्रायवेट वाहन मंगवाना पड़ रहा है। जिला अस्पताल तो ठीक लेकिन संवेदनशील चरक अस्पताल में एक भी एम्बुलेंस मुहैया नहीं कराई गई है और यहाँ शिशु और प्रसूताओं का उपचार होता है और गंभीर स्थिति बनने पर वाहन नहीं मिलने से उनकी जान पर बन आती है। यही हालत माधवनगर अस्पताल की भी। अस्पताल के अधिकारी न तो कोई प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजते हैं और न ही अस्पताल का ढर्रा सुधारने की कोशिश करते हैं। रोगी कल्याण समिति भी बेकार बैठी हुई है और इसने अस्पताल के विकास में आज तक कोई योगदान नहीं दिया है। एम्बुलेंस की कॉल ड्यूटी के नाम पर लाखों रुपए का डीजल बेवजह खर्च किया जाता है और इसका फायदा मरीजों को नहीं मिल पाता। केवल अस्पताल के डॉक्टर ही इसका लाभ ले रहे हैं।
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