इंदौर, राजेश ज्वेल। अग्रिबाण लगातार रेसीडेंसी एरिया की बेशकीमती जमीनों पर हुए घोटालों को जहां उजागर करता रहा, वहीं उसके राजस्व सर्वे की पहल भी प्रशासन से करवाई। हालांकि बीते 10 सालों से रेसीडेंसी एरिया की 1030 एकड़ जमीन के सर्वे की कवायद चल रही है। मगर कोविड से लेकर विधानसभा चुनाव और कई अन्य चुनौतियों के चलते प्रशासन इस सर्वे को पूरा नहीं कर पाया। मगर अब कलेक्टर आशीष सिंह ने यह जिम्मा लिया है और ड्रोन सर्वे के बाद अब मैदानी जांच और दस्तावेजों कीपड़ताल का काम शुरू करवाया जा रहा है। संभवत: आज अधिसूचना भी प्रशासन द्वारा जारी की जा सकती है। ढक्कनवालाकुआं, रतलाम कोठी, गीताभवन चौराहा से लेकरकृषि कॉलेज और चिडिय़ा घर के आसपास सहित रेडियो कॉलोनी तक का एरिया इसमें कवर होता है, जिसमें लगभग 1030 एकड़ अरबों-खरबों की बेशकीमती जमीनें शामिल हैं।
अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कम्पनी के पास भी यह एरिया सालों तक रहा और फिर इसे रेसीडेंसी एरिया अथॉरिटी के रूप में विकसित किया गया। उसके बाद होलकर राज और फिर अब शासन इन जमीनों का मालिक है। मगर बीते 100 सालों में एरिया की जमीनों का विस्तृत सर्वे कभी हो नहीं पाया। उल्टा जमीनों के कई बड़े घोटाले अवश्य हो गए। सबसे पहले 25 साल पूर्व तत्कालीन कलेक्टर मनोज श्रीवास्तव ने रेसीडेंसी एरिया की जमीनों के सर्वे की पहल की थी। उसके बाद अलग-अलग कलेक्टरों ने भी इस मामले को देखा। लेकिन पूर्ण रिकॉर्ड तैयार नहीं हो सके। अब कलेक्टर आशीष सिंह ने रेसीडेंसी एरिया की जमीनों का विस्तृत राजस्व रिकॉर्ड तैयार करने की प्रक्रिया शुरू करवाई है। अपर कलेक्टर श्रीमती सपना लोवंशी ने बताया कि इस संबंध में संभवत: आज ही अधिसूचना जारी की जा सकती है। ड्रोन सर्वे तो पिछले दिनों पूरा हो गया था। अब मैदानी जांच के साथ-साथ दस्तावेजों की पड़ताल की जाना है और संबंधित सम्पत्ति मालिकों से दस्तावेजों के रिकॉर्ड मंगवाए जाएंगे और राजस्व अमले के पास जो रिकॉर्ड मौजूद है उसके मुताबिक भी स्वामित्व देखा जाएगा।
उल्लेखनीय है कि रेसीडेंसी एरिया अत्यंत विस्तृत है, जो कि ढक्कनवाला कुआं, रतलाम कोठी तक फैला हुआ है, जिसमें गीता भवन चौराहा से लेकर कृषि कॉलेज, सेंट रेफियल्स स्कूल, रेडियो कॉलोनी, चिडिय़ा घर, आजाद नगर, जिला जेल होते हुए रेसीडेंसी सहित अन्य एरिया इसमें आते हैं, जिसमें केन्द्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार के भी कई सरकारी भवन बने हुए हैं। कलेक्टर-कमीश्रर सहित आला अधिकारियों के बंगले भी रेसीडेंसी एरिया में ही आते हैं। हालांकि इन जमीनों पर नगर निगम भी अपना हक जताता रहा है। मगर सुप्रीम कोर्ट से 2003 में पूर्व महापौर प्रभाकर अड़सुले के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसे सरकारी जमीन ही माना। इसी तरह रेलीज हाउस की जमीन भी प्रशासन ने अपने कब्जे में ली। दरअसल मध्यप्रदेश शासन के स्वायत्त शासन विभाग ने 25 अगस्त 1955 को एक आदेश जारी कर रेसीडेंसी एरिया को निगम सीमा में शामिल किया था, लेकिन उसकी जमीनों का मालिक निगम को नहीं माना। हालांकि प्रशासन ने भी जब कई जमीनों के रिकॉर्ड जांचे, तो पता चला कि कई के रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं हैं। लिहाजा लीजधारकों से उनके दस्तावेज मांगे गए हैं। चूंकि अड़सुले और रेलीज ब्रदर्स के प्रकरणों में सुप्रीम कोर्ट ने ये जमीन सरकारी बताई।
लिहाजा शासन-प्रशासन ने निगम को इन जमीनों का हस्तांतरण नहीं किया और बाद में हाईकोर्ट ने भी इसे नजूल यानी सरकारी जमीनें ही मानी और निगम को भी निर्देश दिए कि वह रेसीडेंसी एरिया के सभी रिकॉर्ड नजूल विभाग को सौंप दे। दरअसल महाराजा यशवंतराव होलकर के वक्त जो मंदसौर संधी हुई उसमें 1805 में ईस्ट इंडिया कम्पनी को यह एरिया प्राप्त हुआ, जिसके बाद रेसीडेंसी एरिया अथॉरिटी का गठन किया गया। 2 अगस्त 1947 को रेसीडेंसी एरिया होलकर राज का हिस्सा बना और तब उसके कानून भी लागू हुए। तब होलकर राज में इंदौर इस्टेट लैंड रेवेन्यू टेनेंसी एक्ट 1931 प्रभावशील था और 1950 में यहां भारतीय कानून लागू हुआ। मध्य भारत सरकार के स्वायत्त शासन विभाग ने 25 अगस्त 1955 को एक आदेश जारी कर इसे निगम सीमा में शामिल किया, लेकिन बाद में अदालती आदेशों में इन जमीनों को सरकारी ही माना गया। लिहाजा नजूल जमीनों के मुताबिक ही कलेक्टर इन जमीनों की जांच करवाते रहे और अब 1030 एकड़ जमीनों का राजस्व रिकॉर्ड तैयार किया जा रह ा है। इसी जमीन में रहस्यमयी मैसमिक लॉज भी शामिल थी, जो अब सिटी बस का मुख्यालय है। कई वर्ष पूर्व इस जमीन की लीज समाप्त कर इस पर इंदौर सिटी बस कम्पनी का कार्यालय और स्टैंड शुरू किया, जो वर्तमान में चल रहा है, जहां पर शहर सर्विलेंस के लिए निगम ने बड़ा कंट्रोल रूम भी बना रखा है।
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