रामेश्वर धाकड़
भोपाल। मप्र की पंद्रहवीं विधानसभा के मौजूदा 230 सदस्यों में से करीब100 विधायक सोहलवीं विधानसभा में नहीं पहुंचेंगे। 1998 से लेकर 2018 तक के विधानसभा चुनाव का विश्लेषण करें तो औसतन 40 फीासदी विधायक प्रथम बार चुनकर आते हैं। जिसकी वजह यह है कि कुछ विधायकों को टिकट नहीं मिलेंगे और कुछ चुनाव हार जाएंगे। मौजूदा विधानसभा का कार्याकल 13 दिसंबरको पूरा हो रहा है। इसके बाद नई विधानसभा का गठन होगा। राजनीतिक दलों ने टिकट के लिए जिताऊ प्रत्याशियों के लिए होमवर्क भी शुरू कर दिया है। जबकि कुछ नए राजनीतिक दल प्रदेश में सियासी जमीन तलाश रहे हैं। प्रदेश में 2003 और 2018 के चुनावों में सत्ता का परिवर्तन हुआ है। 2003 के चुनावों में भाजपा 173 रिकॉर्ड सीटें जीतकर कांग्रेस के 10 साल के शासन काल के बाद सरकार में लौटी थी। तब 105 नए विधायक चुनकर आए थे। जिनमें से 90 से ज्यादा विधायक भाजपा के ही थे। जबकि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी के भी 9 में से 7 विधायक प्रथम बार विधानसभा पहुंचे थे।
इसलिए वापसी नहीं कर पाते विधायक
हर चुनाव में राजनीतिक दल विधानसभा क्षेत्रों में सर्वे कराती हंै। जिनमें खराब छवि वाले विधायकों का पहले ही टिकट काट दिए जाते हैं। जबकि कुछ विधायक चुनाव हार जाते हैं। यही वजह है कि हर विधानसभा में औसतन 100 से ज्यादा नए चेहरे चुनकर आते हैं।
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