नई दिल्ली: अंग्रेजों के जमाने की 163 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) के स्थान पर लाए जा रहे Bharatiya Nyaya Sanhita (BNS) Bill में महिलाओं से प्यार-मोहब्बत के नाम पर धोखेबाजी को भी संगीन जुर्म (felony) बनाया गया है. अब धार्मिक या किसी अन्य तरह की पहचान छिपाकर (hiding religious or any other identity) किसी महिला से शादी करने पर 10 साल की सजा भुगतनी होगी. यह सजा किसी महिला से शादी करने या प्रमोशन अथवा नौकरी (promotion or job) दिलाने का झूठा वादा करके संभोग करने पर भी लागू होगी.
संसद के मानसून सत्र के आखिरी दिन केंद्र सरकार ने तीन बिल लोकसभा में पेश किए हैं. इनमें BNS Bill के अलावा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता बिल (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita Bill) और भारतीय साक्ष्य बिल (Bharatiya Sakshya Bill) शामिल हैं. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता बिल (BNSS Bill) मौजूदा दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC 1973) की जगह लेगा, जबकि भारतीय साक्ष्य बिल मौजूदा भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA 1972) की जगह लेगा. इन बिलों का मकसद ब्रिटिश गुलामी के दौर के कानूनों को मौजूदा समय के हिसाब से बदलना है. ये तीनों बिल लोकसभा सत्र के आखिरी दिन संसद की स्थायी समिति को रिव्यू के लिए भेज दिए गए हैं और अब शीतकालीन सत्र में इन्हें कानून बनाने के लिए संसद में पेश किया जाएगा.
नई भारतीय न्याय संहिता में महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले अपराधों, हत्याओं और देश के खिलाफ अपराधों के लिए कानून बनाने में प्राथमिकता दी गई है. अब नाबालिग बच्चे से दुष्कर्म करने पर मौत की सजा देने का प्रावधान नए कानून में किया गया है. किसी महिला से गैंगरेप करने पर 20 साल तक की जेल की सजा मिल सकती है. नए कानूनों में छोटे अपराधों के लिए विदेशों की तर्ज पर कम्युनिटी सर्विस (Community Service) की सजा का भी पहली बार प्रावधान किया गया है. इसके तहत कुछ खास तरह के छोटे अपराधों में जज आरोपी को किसी वृद्धाश्रम, अनाथालय या कहीं अन्य जगह पर जाकर कुछ दिन सेवा करने की सजा दे सकता है.
ये भी किए गए हैं कुछ बदला
मौजूदा IPC-CRPC में और नए प्रस्तावित बिलों में कुल 313 अंतर हैं.
मृत्यु दंड को नए कानूनों में भी सर्वोच्च सजा के तौर पर बरकरार रखा गया है.
7 साल से ज्यादा की सजा वाले सभी मामलों में मौके पर सबूत जुटाना फोरेंसिक टीम के लिए अनिवार्य होगा.
गिरफ्तारी के बाद अपराधी के परिजानों को तुरंत जानकारी देने के लिए एक खास पुलिस अधिकारी तैनात किया जाएगा.
मुकदमों में 3 साल के अंदर न्याय मिले, इसके लिए 3 साल तक की सजा वाली धाराओं में समरी ट्रायल किया जाएगा.
किसी भी केस में चार्ज फ्रेम होने के बाद कार्रवाई को लटकाया नहीं जाएगा. इसके 30 दिन में जज को फैसला सुनाना होगा.
सरकारी कर्मचारी के खिलाफ दर्ज मुकदमे में फाइल नहीं लटकेगी. 120 दिन के अंदर केस चलाने की अनुमति देनी होगी.
मृत्यु दंड को उम्रकैद में बदला जा सकेगा, लेकिन सजा पा चुके शख्स को पूरी तरह बरी करना अब आसान नहीं होगा.
दोषियों की संपत्ति कुर्क करने का फैसला अब पुलिस अधिकारी नहीं कर पाएंगे. इसके लिए कोर्ट से आदेश लेना होगा.
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