भोपाल। मप्र सरकार ने लव जिहाद के खिलाफ कानून के मसौदे को अंतिम रूप दे दिया है। गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने बैठक कर कानून को अंतिम रूप दे दिया है। जिसे जल्द ही कैबिनेट में रखा जाएगा। उसके बाद सरकार अगले महीने विधानसभा में पेश करेगी। जिसमें सजा का भी प्रावधान किया है। अब विवाह के लिए धोखा देकर या अन्य कारण से प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराने पर 10 साल की सजा का प्रावधान किया गया है। जबकि धर्मांतरण कराने वाले पंडित, धर्मगुरु, काजी-मौलवी या पादरी को भी पांच साल की सजा भुगतनी होगी। धर्मांतरण के लिए प्रशासन को विधिवत आवेदन देना होगा। लव जिहाद कानून में अनेक कड़े प्रविधान किए गए हैं। शिवराज सरकार लव जिहाद पर अध्यादेश लाने के बजाय विधानसभा में विधेयक लाना चाहती है। अगले माह विधानसभा का सत्र है। उसमें लव जिहाद से जुड़ा विधेयक पारित होना है। इसे देखते हुए सरकार कानून बनाने में तेजी दिखा रही है। गृह मंत्री डॉ. मिश्रा ने धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2020 के मसौदे को अंतिम रूप देने के लिए यह बैठक बुलाई थी। इसमें कानून में कड़े प्रविधान करने को लेकर विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर (सामयिक अध्यक्ष) रामेश्वर शर्मा और अन्य की मांग पर चर्चा के बाद पांच के बजाय 10 साल की सजा का प्रावधान कर दिया गया है। बहला-फुसलाकर, धमकी देकर या जबरदस्ती धर्मांतरण एवं विवाह कराने वाले सजा के हकदार होंगे। ऐसे मामलों में पीडि़त, उसके माता-पिता, परिजन या अभिभावक शिकायत कर सकते हैं। यह संज्ञेय (प्रशासन खुद संज्ञान ले सकेगा) और गैर जमानती अपराध होगा। विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने कानून के मसौदे में किए गए संशोधन को ऐतिहासिक बताया है।
एक महीने पहले देनी होगी सूचना
धर्मांतरण और विवाह कराने वाले दोनों पक्षों (लड़का और लड़की) को एक माह पहले जिला दंडाधिकारी (कलेक्टर) को लिखित आवेदन देना होगा। इसके बगैर धर्मांतरण और विवाह कराया जाता है तो इसमें सहयोग करने वाले सभी आरोपितों के खिलाफ मुख्य आरोपित की तरह ही कानूनी कार्रवाई की जाएगी। धर्मांतरण के आरोपित को स्वयं प्रमाणित करना होगा कि बगैर किसी दबाव, धमकी, लालच और बहकावे के धर्मांतरण या विवाह किया जा रहा है। बाद में पता चलता है कि दबाव या लालच था, तो वह विवाह शून्य माना जाएगा।
संस्थाओं का पंजीयन होगा निरस्त
इस कानून में जबरन धर्मांतरण या विवाह कराने वाली संस्थाओं का पंजीयन निरस्त करने का भी प्रविधान किया जा रहा है। ऐसे मामलों में लिप्त संस्थाओं को आर्थिक सहायता देने और उनसे सहायता लेने वाली संस्थाओं का पंजीयन भी निरस्त किया जा सकेगा।
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