अधिकांश चिकित्सकों द्वारा अन्य उपचार की बजाय ऑक्सीजन बेड और रेमडेसिविर की सलाह देना शुरू की, जिससे परिजन और अधिक हो रहे हैं परेशान
इंदौर। अभी जो कोरोना (Corona) की दूसरी लहर चल रही है उसकी संक्रमण की रफ्तार तो तेज है ही, वहीं वह पूर्व की तुलना में ज्यादा घातक साबित हो रही है। 10 से 15 प्रतिशत संक्रमण अधिकांश मरीजों को एचआर सिटी टेस्ट (City Scan) करवाने पर निकल रहा है और यही कारण है कि ऐसे तमाम मरीजों को चिकित्सकों को अस्पताल (Hospitals) में भर्ती होने और रेमडेसिविर इंजेक्शन (Remedisvir Injection) लगाने की सलाह दी जा रही है, जिसके चलते इन मरीजों के परिजन ऑक्सीजन (Oxygen) बेड से लेकर इंजेक्शन हासिल करने का ही संघर्ष दिनभर करते हैं और कई मरीजों की तो इस चक्कर में मौत भी हो रही है। जबकि इनमें से कुछ मरीजों ऐसे हैं, जिन्हें अगर चिकित्सक सलाह देते हुए उनका अन्य दवाइयों के माध्यम से उपचार करें और होम आइसोलेशन में रखवाएं तो दो-तीन दिन में वे ठीक भी हो सकते हैं। लेकिन अभी तो कम संक्रमित मरीज और उनके परिजन इतने अधिक दहशत में हैं कि वे अस्पताल में भर्ती करवाने और इंजेक्शन लगवाने को ही अंतिम इलाज मान रहे हैं।
एक तरफ डब्ल्यूएचओ (WHO) से लेकर तमाम बड़े चिकित्सक-विशेषज्ञ रेमडेसिविर इंजेक्शन (Remedisvir Injection) को अधिक कारगर नहीं बताते हैं, दूसरी तरफ इन इंजेक्शनों का धड़ल्ले से इस्तेमाल भी हो रहा है। हालांकि मरीजों को इससे लाभ भी मिलता है और उनका बढ़ता संक्रमण रूक जाता है। लेकिन अभी इस चक्कर में 10 से 15 फीसदी भी अगर किसी को संक्रमण है तो उसे भी भर्ती होने और इंजेक्शन लगवाने की सलाह अधिकांश डॉक्टरों द्वारा दी जा रही है। जबकि 40 प्रतिशत से अधिक संक्रमित व्यक्ति को ही ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है और उसके साथ इंजेक्शन लगाना पड़ते हैं। मगर अभी इससे कम संक्रमित मरीजों को भी चूंकि चिकित्सक सलाह देते हैं कि वे भर्ती हो जाएं और इंजेक्शन भी लगवा लें, तो उसके साथ ही परिजनों की भागदौड़ शुरू हो जाती है। सुबह से रात तक बेड के लिए मारामारी और जैसे-तेसे अगर बेड मिल भी गया, तो फिर ऑक्सीजन वाला बेड और आईसीयू तो वैसे भी उपलब्ध नहीं है। उसके साथ ही 6 इंजेक्शनों का डोज लगवाने की मशक्कत शुरू हो जाती है। पहले दिन एक साथ दो इंजेक्शन और उसके बाद फिर एक-एक इंजेक्शन अगले 4 दिनों में देना पड़ते हैं। यानी कुल 5 दिनों में 6 इंजेक्शन का डोज एक मरीज को देना पड़ता है और अभी हालत यह है कि एक इंजेक्शन भी परिजन हासिल नहीं कर पाते हैं। जबकि इसकी बजाय दूसरी वैकल्पिक दवाइयां और इंजेक्शन भी उपलब्ध हैं, जिनसे इलाज किया जा सकता है। वहीं टोसी जैसा इंजेक्शन तो दुर्लभी ही हो गया जो किसी कीमत पर इंदौर छोड़ पूरे देश में उपलब्ध नहीं है।
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