बैतूल. बांग्लादेश (Bangladesh) में हिंदुओं (Hindus) पर हो रहे अत्याचार का भारत में पुरजोर विरोध जारी है. इस बीच मध्य प्रदेश (MP) के बैतूल (Betul) में स्थित बालाजीपुरम मंदिर (Balajipuram Temple) के संस्थापक ने एक बड़ा ऐलान किया है. सैम वर्मा ने कहा है कि जो भी कथावाचक बांग्लादेश में जाकर भागवत कथा (Bhagwat Katha) करेगा, उसे एक करोड़ रुपये दक्षिणा के रूप में दी जाएगी. इतना ही नहीं, उस कथावाचक और उनके दल को बांग्लादेश आने-जाने के लिए बोइंग चार्टर विमान की सुविधा भी मुहैया कराई जाएगी.
देश के पांचवें धाम के नाम से मशहूर बैतूल के बालाजीपुरम मंदिर संस्थान ने ऐतिहासिक घोषणा की है. संस्थान के संस्थापक एनआरआई सैम वर्मा ने बताया कि कोई भी भारतीय कथावाचक, जो बांग्लादेश में जाकर भागवत कथा आयोजित करने की हिम्मत दिखाएगा, उसे मंदिर प्रबंधन न केवल एक करोड़ रुपये की दक्षिणा देगा, बल्कि बांग्लादेश आने-जाने के लिए बोइंग चार्टर प्लेन की सुविधा भी उपलब्ध कराएगा.
इस घोषणा के पीछे बालाजीपुरम मंदिर संस्थान ने अपनी मंशा भी स्पष्ट की है. सैम वर्मा के अनुसार, सनातन धर्म सभी धर्मों, मानवता, और प्राणियों की रक्षा करना सिखाता है. आज बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के हालात ऐसे हैं कि उन्हें भागवत कथा के ज्ञान की सबसे ज्यादा जरूरत है. इसके अलावा, भागवत कथा दल को बांग्लादेश भेजने के लिए सरकारी स्तर पर जो भी प्रयास जरूरी होंगे, वह भी बालाजीपुरम मंदिर संस्थान खुद उठाने को तैयार है.
बालाजीपुरम मंदिर के संस्थापक सैम वर्मा का कहना है कि भागवत कथा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, यह मानवता और शांति का संदेश देती है. बांग्लादेश में मौजूदा परिस्थितियों में सनातन धर्म का यह संदेश पहुंचाना बेहद जरूरी है. हम हर संभव मदद करने के लिए तैयार हैं. हम चाहते हैं कि बांग्लादेश में सनातन धर्म का संदेश पहुंचे. इसके लिए जो भी सरकारी अनुमति या प्रक्रियाएं होंगी, हम वह सुनिश्चित करेंगे.
बता दें कि बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के खिलाफ हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं. ऐसे में वहां भागवत कथा आयोजित करना न केवल एक चुनौती है, बल्कि इसके लिए साहस भी चाहिए. हालांकि, अब सवाल यह है कि क्या भारत के नामचीन कथावाचक बांग्लादेश जाने के लिए तैयार होंगे? और अगर कोई कथावाचक इस चुनौती को स्वीकार करता है, तो क्या भारत सरकार उसे वहां जाने की अनुमति देगी?
बालाजीपुरम मंदिर का यह प्रस्ताव कई सवाल खड़े करता है. क्या कोई कथावाचक इस साहसिक कदम के लिए आगे आएगा? और क्या यह प्रयास बांग्लादेश में सनातन धर्म का संदेश पहुंचाने में सफल होगा? आगे क्या होता है, यह देखना दिलचस्प होगा.
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