अमेरिका के ऊर्जा विभाग ने बताया है कि उस पर साइबर हमला हुआ है और ये अमेरिकी सरकार के किसी भी विभाग पर हुआ अब तक का सबसे बड़ा हमला है. ये विभाग अमेरिका के परमाणु हथियारों की देखरेख के लिए ज़िम्मेदार है. हालाँकि विभाग ने साफ़ किया है कि हथियारों के भंडार की सुरक्षा पर इस हैकिंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. टेक कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने भी गुरुवार को बताया है कि उसे अपने सिस्टम में ख़तरनाक सॉफ्टवेयर मिला है. आशंका जताई जा रही है कि ये साइबर हमला रूस ने किया है लेकिन रूस ने इससे साफ़ इनकार किया है.
बीते रविवार को अमेरिका के ख़ज़ाना एवं वाणिज्य विभाग पर साइबर हमले की जानकारी सामने आई थी. अधिकारियों का कहना था कि लगभग एक महीने से ये साइबर हमला जारी था जिसका पता रविवार को लग सका. इस साइबर हमले पर अब तक राष्ट्रपति ट्रंप की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. वहीं, नवनिवार्चित राष्ट्रपति जो बाइडन ने साइबर सुरक्षा को अपने प्रशासन की सबसे बड़ी प्राथमिकता बताया है.
बाइडन ने कहा, ”सबसे पहले हमें अपने विरोधियों को साइबर हमले से रोकना होगा. हम ये करेंगे और ये हमारी प्राथमिकता होगी, इस तरह के हमले करने वालों को भारी भुगतान करना होगा और इसे हम अपने सहयोगी और साथी देशों से गठजोड़ करके भी लागू करेंगे.” अमेरिका की सबसे बड़ी साइबर एजेंसी साइबरसिक्योरिटी इंफ़्रास्ट्रक्चर एजेंसी (सीसा) ने गुरुवार को कहा कि इस साइबर हमले से निपटना ‘ बेहद जटिल और चुनौतीपूर्ण होगा.’
सीसा के मुताबिक़ इस हमले से “महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा” क्षतिग्रस्त हो गया था, फ़ेडरल एजेंसियों और निजी क्षेत्र की कंपनियों की सुरक्षा को नुक़सान पहुंचा है और इस नुक़सान ने “गंभीर ख़तरा” पैदा कर दिया. सीसा ने कहा है कि ये हैकिंग मार्च 2020 से ही शुरू की गई. और इसके पीछे जो लोग हैं उन्होंने “धैर्य, परिचालन सुरक्षा और जटिल ट्रेडक्राफ्ट’ के साथ इसे अंजाम दिया है. एजेंसी अब तक ये पता नहीं लगा पाई है कि इस हमले में कौन सी सूचनाएं चुराई गई हैं. ऊर्जा विभाग पर हमले को संबोधित करते हुए, प्रवक्ता शायलिन हाइन्स ने कहा कि “मैलवेयर ने केवल बिज़नेस नेटवर्क को नुक़सान पहुंचाया है.
उन्होंने बताया कि परमाणु हथियारों की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार नेशनल न्यूक्लियर सिक्योरिटी एडमिनिस्ट्रेशन यानि एनएनएसए के सुरक्षा ऑपरेशन को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा है. ये साइबर हमला किन-किन पर हुआ है इसकी सूची काफ़ी लंबी है और ये बढ़ती ही जा रही है. कई सरकारी विभाग से लेकर निजी कंपनियां, संस्थाएं सभी इसी की जांच कर रहे हैं कि कहीं उनके सिस्टम पर तो हमला नहीं हुआ है और क्या जानकारियां चोरी हुई हैं? इस जांच में कुछ महीने लग सकते हैं.”
”इस हमले का दायरा काफ़ी बड़ा हो सकता है लेकिन अभी किसी को ये पक्का नहीं पता कि इस हैकिंग का असर क्या होने वाला है. ये एक क्लासिक जासूसी का मामला लग रहा है जिसमें जानकारियों को टारगेट कर चुराया गया हो. क्योंकि अब तक ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता कि हैकर ने ये हमला सिस्टम को तबाह करने के लिए किया था. हालांकि आगे की जांच ही इस सवाल का सही जवाब दे पाएगी.” ”अमेरिका के सामने इस बार परिस्थिति थोड़ी जटिल इसलिए भी है क्योंकि जासूसी ऐसी चीज़ है जिसे नियमित रूप से वह भी करता है लेकिन इस बार अमेरिका का बचाव बेहतर नहीं था जिससे वह ना तो हैकर्स का पता लगा सका और ना ही उन्हें रोकने में कामयाब रहा.”
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