• img-fluid

    अब कोरोना पीड़ित परिवारों की ‘रोजगार सम्बल’ सेवा का समय

  • May 23, 2021
    कौशल मूंदड़ा
    कोरोना काल में जरूरतमंदों के लिए भोजन पैकेट की व्यवस्था करने वाले, गोपनीय रूप से राशन किट पहुंचाने वाले, ऑक्सीमीटर की व्यवस्था करने वाले, ऑक्सीजन कन्संट्रेटर की निःशुल्क व्यवस्था करने वाले, रेमडेसिविर जैसे इंजेक्शन की उपलब्धता के लिए जी-जान लगाने वाले और अंत समय में अंतिम क्रिया में भी परायों को अपना स्वजन समझ संस्कार करने और अंत्येष्टि के ऑनलाइन दर्शन परिवारजनों को कराने वाले, प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से खुद की चिंता न करते हुए किसी न किसी सेवाकार्य में जुटे हर सेवाभावी को कोटिशः धन्यवाद दिया जाए, तो भी कम है। देशभर में कई सामाजिक-शैक्षणिक-स्वयंसेवी संस्थाएं अपनी ओर से कोरोना पीड़ि़त परिवारों को सम्बल प्रदान करने के लिए कदम बढ़ा रही हैं, लेकिन अब इन सेवा स्वरूपों से दो कदम आगे बढ़ते हुए सेवा की सूची में ‘रोजगार सेवा’ प्रकल्प को जोड़ने की जरूरत आन पड़ी है। अब इन सेवाकार्यों में ‘रोजगार सेवा’ जोड़ते हुए उन परिवारों के स्वाभिमान को मजबूत बनाए रखने का वक्त आ गया है।
    कोरोना ने सिर्फ लोगों को आर्थिक रूप से कमजोर ही नहीं किया, बल्कि हजारों घरों से उनका ‘कमाऊपूत’ ही छीन लिया है। कहीं पिता चले गए तो कहीं माता-पिता दोनों चले गए, उन परिवारों में पीछे रह गए बुजुर्गों और बच्चों के चेहरों की मायूसी को यहां लिख पाना संभव नहीं है। अबतक जो व्यक्ति पूरे परिवार को दिलासा दे रहा था कि कोरोना काल से उबरने के बाद फिर से दोनों हाथों से मेहनत करके कमाकर गृहस्थी की गाड़ी को पटरी पर ले आएंगे, उन हाथों को ही जब कोरोना छीन ले तो परिवार की बेबसी को समझना मुश्किल नहीं है। ऐसेे हालात पर अब सिर्फ चिंता जताने का समय नहीं रहा, आगे आकर उस घर में से सक्षम को तलाशकर और जरूरत पड़े तो तराशकर उसे रोजगार का सम्बल प्रदान करना मौजूदा समय की जरूरत हो गई है।
    रोटी-कपड़ा-मकान, इन तीन मूलभूत आवश्यकताओं में से मकान किराये का भी चल सकता है, छोटा होगा तो भी चल सकता है, कपड़े सामान्य भी चल सकते हैं, लेकिन रोटी तो रोज चाहिए और अबतक स्वाभिमान से जी रहा परिवार कैसे किसके आगे अपनी बेबसी बयां करेगा। इसके लिए तो उसके हाथ में न्यूनतम आजीविका वाला रोजगार भी होगा, तब भी वह सुख की सूखी रोटी स्वाभिमान से खाएगा और स्वयं के साथ परिवार को भी संघर्ष की सीख देगा।

    इन तीन आवश्यकताओं के साथ आज के समय में शिक्षा और स्वास्थ्य भी बेहद जरूरी आवश्यकताएं हैं। एकबार शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए सरकारी व्यवस्थाओं और योजनाओं का भी भरोसा किया जा सकता है। लेकिन, जिन्होंने अचानक अपने मुखिया को खो दिया और अब तक निजी शिक्षण संस्थानों में पढ़ रहे थे, उनके लिए अचानक ‘गरीब’ हो जाना वज्रघात से कम नहीं। साधुवाद है उन निजी शिक्षण संस्थानों को जिन्होंने सूचना प्राप्त होते ही हाथों-हाथ अपने स्कूल के बच्चों के परिवारों को संदेश भेजा कि इनकी पढ़ाई की चिंता न करें। कुछ जाने-माने कोचिंग सेंटर्स ने भी ऐसी घोषणाएं की हैं। उम्मीद है धीरे-धीरे सभी ऐसा करेंगे। इसके विकल्प के रूप में सरकार शिक्षा के अधिकार कानून में परिवर्धन कर कोरोना से अचानक पिता को खो चुके बच्चों को निःशुल्क सीट पर प्रवेश का प्रावधान कर सकती है। कुल 25 प्रतिशत में से 5 प्रतिशत भी कोरोना पीड़ितों के लिए रख दिया जाए तो भी काफी हो सकता है। और ऐसे आवेदकों की स्थानीय स्तर पर जांच के लिए स्कूल – अभिभावक कमेटी को जिम्मेदार बनाया जाए जिससे पात्र का चयन सटीकता से करने में मदद मिल सकेगी।
    अब स्वास्थ्य के लिए बात करें तो फिलहाल राजस्थान जैसी सरकार ने चिरंजीवी योजना ऐसी जारी की है जिसमें 5 लाख तक का उपचार निजी अस्पतालों में भी कैशलैस है। सरकार चाहे तो कोरोना से मुखिया को खो चुके परिवारों से किस्त की राशि नहीं लेने का ऐलान कर सकती है। ऐसी योजना कोरोना से कमाऊपूत को खो चुके परिवारों के लिए अन्य राज्य सरकारों को विशेष तौर से लागू करने पर सोचना होगा। लेकिन, निजी अस्पतालों का अनुभव भी कोई ज्यादा अच्छा नहीं है। राजस्थान में ही चिरंजीवी योजना में शामिल मरीजों को निजी अस्पतालों द्वारा टरकाने की शिकायतें कम नहीं हैं। सरकारों को निजी अस्पतालों को लगातार कसते रहना होगा।
    देश की दिल्ली सरकार ने भी ऐसे परिवारों के लिए 2500 रुपये प्रतिमाह पेंशन का ऐलान किया है, लेकिन क्या इस राशि से किसी का घर चल सकता है। कमाऊपूत पर यदि उसके माता-पिता, पत्नी, दो बच्चों की भी आश्रितता मानी जाए तो इतने सदस्यों वाले परिवार के लिए देश के अलग-अलग क्षेत्रों के अनुरूप 12 से लेकर 20 हजार प्रतिमाह की व्यवस्था जरूरी है। क्या उन्हें मकान का किराया नहीं देना है, क्या उन्हें बिजली का बिल नहीं भरना है। 
    ऐसी विकट परिस्थितियों में पारिवारिक रिश्तेदारों, मित्रों, परिचितों सहित समाजों ने भी अपने स्तर पर ऐसे परिवारों को संभालने का प्रयास शुरू किया है, लेकिन एकबार, दो बार, तीन बार सहयोग राशि देने से जीवन भर का गुजारा नहीं हो सकता। ऐसे परिवारों के लिए स्थायी रोजगार का जुगाड़ जरूरी है। इसके लिए सेवाप्रदाताओं को आगे आना होगा, कोरोना पीड़ितों को प्राथमिकता का प्रावधान करना होगा, यह भी देखना होगा कि परिवार में कोई अकुशल भी है तो उसके प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी होगी। प्रशिक्षणकाल में कुछ पैसा देने की भी व्यवस्था रखनी होगी ताकि पीड़ित के घर का चूल्हा भी जलता रहे।
    इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कोरोना के कष्टदायी काल के बाद अच्छे टर्नओवर वाले व्यवसायी भी किराया, बिजली बिल आदि के नियमित खर्च चुकाने की स्थिति में नहीं रहे हैं, ऐसे में वे किसी भी कार्मिक को उतना भुगतान करने की स्थिति में भी नहीं होंगे जितना कोरोनाकाल से पहले थे। फिर भी पीड़ित के लिए ज्यादा नहीं कम से ही सही, आमदनी की शुरुआत तो हो ही सकेगी। यकीन मानिये आमदनी कम ही सही, लेकिन यह उसका और उसके परिवार का सम्बल बनाए रखने में सशक्त साबित होगी। 
    (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

    Share:

    अलग नहीं है... Black और White fungus

    Sun May 23 , 2021
    मध्यप्रदेश के दो शहरों में मिले व्हाइट फंगस के मरीज भोपाल। मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के जबलपुर और ग्वालियर में पहली बार सफेद फंगस के मामले प्रकाश में आए हैं। जबलपुर में 55 वर्षीय व्यक्ति की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद में सफेद फंगस (White fungus) से संक्रमित हो गया। उक्त व्यक्ति में आए सफेद फंगस […]
    सम्बंधित ख़बरें
  • खरी-खरी
    मंगलवार का राशिफल
    मनोरंजन
    अभी-अभी
    Archives
  • ©2024 Agnibaan , All Rights Reserved