बलिया, 03 अगस्त । बलिया में सावन की पूर्णिमा व रक्षाबंधन के पर्व पर नगर के विभिन्न अखाड़ों द्वारा परंपरागत तरीके से निकाले जाने वाला महावीरी झंडा जुलूस करीब डेढ़ सौ सालों में पहली बार नहीं निकलेगा। कभी अंग्रेजों को ताकत दिखाने वाला यह धार्मिक अनुष्ठान कोरोना के चलते आयोजित नहीं हो रहा है। इसको लेकर अखाड़ेदारों में मायूसी है।
प्रदेश में अपनी तरह का अनोखा महावीरी झंडा जुलूस सिर्फ बलिया में ही निकलता है। इसके पीछे की कहानी जोश से भर देती है। सावन की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन आयोजित होने वाला यह अनुष्ठान धीरे-धीरे अंग्रेजों को शक्ति दिखाने का एक माध्यम बन गया। चूंकि मंगल पांडेय बलिया के ही थे, लिहाजा 1857 की पहली क्रांति के बाद जिले के लोगों ने इसे शक्ति प्रदर्शन का एक जरिया बना लिया। हर वर्ष शहर में अंग्रेजी सत्ता को चुनौती देता महावीरी झंडा जुलूस देश की आजादी के बाद भी बदस्तूर जारी रहा।
जय श्रीराम के घोष से गूंज उठती है भृगु नगरी
इस ऐतिहासिक महावीरी झंडा जुलूस में आस्था का सैलाब उमड़ता है। परंपरागत तरीके से निकाले जाने जुलूस के दौरान जय श्रीराम व जय हनुमान के जयकारे गूंजते हैं। अखाड़ों के युवाओं द्वारा एक से बढ़कर एक हैरतअंगेज करतब दिखाए जाते हैं। इस दौरान पूरा शहर केसरिया रंग से पट जाता है। देशभक्ति गीतों, मंत्र एवं जय श्रीराम के जयघोष से पूरा कस्बा गूंज उठता है।
हैरतअंगेज करतब दिखाते हैं अखाड़ेदार
इस दौरान सुरक्षा के मद्देनजर चप्पे-चप्पे पर पुलिस मुश्तैद रहती है। सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस व पीएसी के जवान के साथ ही खुफिया टीम भी जुलूस के साथ चलती है। जुलूस में विभिन्न अखाड़ों के युवाओं द्वारा नगर के विभिन्न चौराहों पर तलवारबाजी, बनैठी, भाला, फरसा, अग्निशमन जैसे खतरनाक खेलों का घंटों प्रदर्शन किया जाता है। अनोखी झांकियां लोगों का मन मोह लेती हैं।
साक्षी बनते हैं डीएम-एसपी
शहर के लगभग बीचोबीच विशुनीपुर स्थित जामा मस्जिद के पास लगे टेंट में जिलाधिकारी व पुलिस अधीक्षक महावीरी झंडा जुलूस के साक्षी बनते हैं। लेकिन इस वर्ष यह ऐतिहासिक महावीरी झंडा जुलूस नहीं निकल पा रहा है। क्योंकि कोरोना के चलते सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करने के लिए इस तरह के आयोजनों पर सरकार ने रोक लगा रखी है।
अंग्रेजों को ताकत दिखाने के लिए निकलता था जुलूस
शहर में कुल नौ अखाड़ों द्वारा महावीरी झंडा जुलूस निकाला जाता है। मिड्ढी स्थित शिव मंदिर कमेटी अखाड़ा के अध्यक्ष रघुनाथ सिंह बताते हैं कि 1857 की क्रांति से पहले से महावीरी झंडा जुलूस निकलता आ रहा है। शुरू में यह सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान हुआ करता था। बाद में इसे अंग्रेजों के सामने शक्ति प्रदर्शन के रूप में निकाला जाने लगा। जिसमे सभी प्रमुख अखाड़ों द्वारा अंग्रेजों को अपनी ताकत दिखाई जाती थी। उन्होंने कहा कि देश आजाद हुआ तब यह परम्परा में बदल गई। इस बार कोरोना के कारण इसे नहीं निकाला जा रहा है। बस मंदिर में कुछ लोग सामाजिक दूरी के पालन करते हुए धार्मिक अनुष्ठान को प्रतीकात्मक रूप से करेंगे। शहर के विभिन्न रूटों में यह नहीं निकलेगा।
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